Karbala ka Ajeeb Manzar hai
कर्बला का अजीब मंज़र है
तीर है और गुलुए असग़र है
लौट आ रन से ए अली असग़र
हर घडी ये सदाए मादर है
सूख जा ए फुरात के पानी
खुश्क रन में गुलु-ए-असग़र है
आओ बच्चो मदद करो आकर
शह के काँधे पा लाशें अकबर है
गोशवारे ना ले सकीना के
देख ज़ालिम ये किसकी दुख्तर है
गिर पड़ा क्यों ना आसमान फट कर
सर बरहना अली की दुख्तर है
रोज़े महशर का खौफ क्या तुझको
जब तू कामिल गुलाम-ए-सरवर है